What is pranayam
आज हम जानेंगे कि प्राणायाम क्या है, प्राणायाम के कितने प्रकार है, प्राणायाम के लाभ क्या है इत्यादि ! शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत सारे उपाय है और उसमे से एक मुख्य उपाय योग है ! और योग में बहुत सारे नियम और पद्ति है ! जिसमें से एक है प्राणायाम बहुत सारे लोग बोलते हैं की प्राणायाम एक आशन है ! पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है प्राणायाम pranayam को योग का एक अंग हमेसा से माना जाता रहा है !
और उसी तरह आसन भी एक तरह से योग का एक अंग है ! प्राण (साँस) पर नियंत्रण को ही प्राणायाम कहते है ! अगर आप के प्राण जब एक बार किसी के वश में हो जाता है तब वे स्वस्थ स्वेच्छानुसार सुदीर्घ जीवन, दृढ़ संकल्प, शांति तथा आनंद की प्राप्ति होती है !प्राणायाम की उच्च अवस्था में कुंडलिनी जागरण में जल्दी सहायता करती है !
चूकि जब श्वास तेज चलने लगती है तब मन विचलित होने लगता है ! और जब श्वास स्थिर रहती है तब मन शांत और निर्मल हो जाता है ! इसलिए सांस पर नियंत्रण पाकर शरीर को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाया जा सकता है ! योग शास्त्र के अनुसार सांस एक ऐसी क्रिया है ! जिसके द्वारा मन और तन एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ जाते हैं !
श्वास पर नियंत्रण की सहायता से मन तक पंहुचा जा सकता है ! तथा मन की शुद्धि के लिए भी प्राणायाम अत्यंत महत्वपूर्ण है ! चरक संघिता के अनुसार वायु को मन का नियंता एवं प्राण माना जाता है ! आयुर्वेद के अनुसार शरीर में उत्पन्न होने वाली वायु उसके ! आयाम अर्थात नियंत्रण करने को प्राणायाम कहा जाता हैं ! प्राणायाम करने से शरीर में उत्पन्न होने वाली अनेकों बीमारियां छूमंतर हो जाती है !
प्राणायाम के प्रकार types of pranayam
प्राणायाम pranayam अनेकों प्रकार के होते हैं ! आईए अब सभी प्राणायाम और उसके लाभ को विस्तार पूर्वक समझते हैं ! इनमें से किसी भी प्राणायाम का अभ्यास करके पुण्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है !
अग्निसार प्राणायाम
हमेसा बैठकर पद्मासन श्वास को बाहर निकाल कर पेट को फुलायें और पिचकाते रहे ! इस प्रकार यह क्रिया बार-बार दोहराएँ ! आरम्भ में इसे बीस से तीस बार तक करते हुए धीरे-धीरे बढ़ाते जायें ! इस प्रीक्रिया को खड़े होकर भी कर सकते हैं ! दोनों पैरों को करीब चालिस से पचास से.मी. तक फैलाएं !
आगे झुकते हुए दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रख ले ! इसके पश्चात् सामने की ओर देखते हुए उसी तरह श्वास को लेते हुए पेट को फुलायें ! और श्वास छोड़ते हुए पेट को पिचकाएँ रहे ! कमर दर्द वालों को यह विधि बिलकुल नहीं करनी चाहिए !
अग्निसार प्राणायाम के लाभ
pranayam करने से पाचन सुचारु रूप से चलता है और भूख अच्छी लगती है ! उदर सम्बन्धी समस्त विकार दूर हो जाते हैं, मोटापा, मधुमेह व मूत्ररोग भी ठीक होते हैं ! पेशाब में जलन की समस्या ठीक हो जाती है बहुमूत्र का होना इस क्रिया में बिलकुल बंद हो जाता है ! इसे कब्ज या अल्सर के रोगियों को बिलकुल नहीं करनी चाहिए !
कपालभाति प्राणायाम
कपालभाती प्राणायाम pranayam में केवल रेचक एवंम श्वास को शक्ति व पूरवक बाहर छोड़ने में ही पूरा ध्यान दिया जाता है. श्वास को भरने के लिए प्रयत्न नहीं करते लेकिन सहज रूप से जितना श्वास अंदर चला जाता है, जाने देते हैं, पूरा ध्यान श्वास को बाहर छोड़ने में ही होती है. ऐसा करते हुए स्वभाविक रूप से पेट में संकुचन और प्रसरण की क्रिया होती है एवंम मूलाधार, स्वाधिष्ठान व मनिपूरक चक्र पर विशेष प्रभाव पड़ता है.
पांच मिनट से प्रारम्भ करके सात मिनट तक इसका अभ्यास करना चाहिए. शुरू में कपालभाती करते हुए जब थकान लगे, तब-तब बीच में श्वासन ले लेना चाहिए. एक से दो माह के अभ्यास के बाद ये प्राणायाम को चार से कर पाँच मिनट तक बिना रुके किया जा सकता है.
इसको करते समय मन में भी ऐसा विचार रख करना चाहिए कि जैसे ही में श्वास को बाहर छोड़ रहा हूँ, इस प्रश्वास के साथ मेरे शरीर के समस्त रोग एवं नकारात्मक विचार या बाते बाहर निकल रहे हैं !
कपालभाति प्राणायाम के लाभ benefit of pranayam
* मुख मंडल पर तेजी और सौंदर्य को बढ़ाता है
* एलर्जी, कफ, दमा, साइनस आदि रोग दूर योग करने से.
* ह्रदय, फेफड़े, एवं मस्तिष्क के रोग दूर योग करने से.
* यह जो है मोटापा, मधुमेह, कब्ज, गैस, अम्लपित्त, प्रोस्टेट व किडनी से सम्बंधित रोग दूर होते हैं. योग करने से
* जो है यह आमाशय, अग्नाशय, यकृत, प्लीहा एवं आँतों को निरोग रखता है. योग करने से
* मन स्थिर, शांत व प्रसन्न रहता है. नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं जिससे Depression इत्यादि रोगों से छुटकारा मिलता है. योग करने से
* चक्रों का सोधन होता है एवंम मूलाधार चक्र से लेकर सहस्रार चक्र पर्यन्त समस्त चक्रों में एवं दिव्य शक्ति का संचरण
अनुलोम विलोम प्राणायाम
पद्मासन में स्थिर होकर, कमर व गर्दन सीधी रखते हैं एवं दृस्टि सम रहती है ! हाथ को अंजलि मुद्रा में (बायें हाथ को पेट के पास रखकर उसकी हथेली पर दाहिना हाथ रखे हैं ! हथेली आसमान की तरफ रहेगी) रखते हैं दायें हाथ की मुद्रा (अनामिका एवंम माधयम अँगुली बांयी नासिका पर एवं अँगूठा दाहिनी नासिका पर रखते हैं) बनाते हैं ! बाएं नासिका से साँस का रेचक करके बिना आवाज किये साँस का पूरक करते रहें और पेट को फुलाते रहें और घड़े की आकर्ति प्रदान करते रहें !
और जालंधर बन्ध तथा मूल बन्ध लगाते रहें आँख बंद करते ही आपके हाथ वापस अंजली मुद्रा में लाएं और कुम्भक लगाते रहें ! साँस न रोक पाने की स्थिति में हाथ की मुद्रा बनाकर वापस नासिका पर लाएँ ! इसके बाद आंख खोलते हैं तथा दाहिनी नासिका से साँश का रेचन करते रहें !
और उडीय्यान बन्ध लगाते रहें ! इसके बाद दाएँ नासिका से ही साँस का पूरक करते रहें फिर उसी प्रकार कुमभक लगाकर बांएँ से रेचक करते हैं ! इस प्रकार एक चक्र पूर्ण होता है इसे कई बार दोहरा सकते है !
अनुलोम विलोम के लाभ
- हार्ट की नसों का ब्लाँकेज दूर हो जाता है
- हाई ब्लड प्रेशर और लो ब्लड प्रेशर ठिक हो जाते हैं
- आर्थराइटीस, रोमटिक आर्थराटीस, कार्टीलेज छिंड़ता की समस्या दूर हो जाती है
- टेढे लीगामेंटस सीधे होने लगते हैं
- व्हेरीकोज व्हेनस की समस्या ठीक हो जाती है
- कोलेस्टाँल /cholesterol.,टाँक्सीनस, जैसे विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर निकलते हैं
- सायकीक पेंशनट्स मे इंप्रूवमेंट होता है
- कीडनी प्राकृतिक रूप से स्वछ होती है डायलेसीस करने की आवश्यकता नहीं पडती
- खतरनाक कँन्सर तक ठीक हो जाते हैं
- सभी प्रकार की एलर्जी मीट जाती है
- प्राणायाम pranayam से मेमरी बढ़ती है
- सर्दी, खाँसी, नाक, गला की समस्या दूर हो जाती है
- ब्रेन ट्युमर तक भी ठीक होने लगते हैं
- किसी प्रकार के चर्म रोग की समस्या मीट जाती है
- मस्तिषक सम्बधित सभी व्याधि ठीक हो जाती है
- पार्किनसन, पैरालिसिस इत्यादी स्नायुओ सम्बधित रोग दूर होते हैं
- सायनस, इस्नोफीलिया ठीक हो जाती है
- डायबीटीस पुरी तरह ठीक होने लगता है
- टाँन्सीलाइटिस की व्याधि ठीक हो जाती है
- थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान सम बना रहता है
- रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ़ती है
- दमा का रोग जड़ से ठीक हो जाता है
- अनुलोम विलोम के करने से किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती
शीतकारी प्राणायाम pranayam
सीतकारी प्राणायाम के अन्दर सीतकार की तरह आवाज होती है. इसलिए इसे सीतकारी प्राणायाम कहते हैं
पद्मासन में स्थित होकर हाथ अंजलि मुदा में रखते हैं. जीभ को उल्टाकर के तालु से लगाते हैं और दोनों दन्त पंक्ति मिलाते हैं और आवाज के साथ मुँह से पूरक करते हैं. मूलबन्ध तथा जालंधर बंध लगाते हुए कुंभक कर सकते हैं. साँस न रोक पाने की स्थिती में मूलबन्ध तथा जालधर बाँध खोलते हुए दोनों नासिकाओं से साँस का रेचन रहती हैं !
शीतकारी प्राणायाम के लाभ
• इससे शरीर कामदेव की तरह सुंदरता बढ़ती है.
• गर्मी से उत्पन्न रोगों को ठीक करता है व सवस्थ
• शरीर अंदुरुनिक तंत्र को ठंडा रखता है.
• उच्चतम रक्तचाप तथा ह्रदय रोगियों के लिये अच्छा है.
• इसके निरंतर अभ्यास से मानसिक Depression दूर होता है और साधक को भूख, प्यास, निद्रा, आलश आदि नहीं सताते.
• रक्त विकार एवंम पेचीस को दूर करता है.
• आँख और कानों को शक्तिशाली बनती है.
• यकृत तथा प्लीहा को क्रियाशील करता है.
• अम्लता को दूर करने में सक्षम है
• पित्त प्रकृति वालों के लिए यह सबसे अच्छा है.
• कुंडली जागरण में सहायक है.
शीतली प्राणायाम
इस तरह की प्राणायाम pranayam में अंदुरनी शरीर में अत्यधिक शीतलता की अनुभूति होती है पद्मासन में स्थित मजबूती में होकर व हाथों को अंजली मुद्रा में रखे ! कमर व गर्दन सीधी रखें दृष्टी सम रहती है इसके बाद जीभ को मुँह से बाहर निकालते हैं ! और नली के समान गोलाकार बनाते हैं गोलाकार बना लेने के पश्चात जीभ से ही आवाज के साथ साँस का पूरा करते हैं जैसे साँस का पूरक करते हैं वैसे पेट बाहर की ओर घड़े की आकर्ति की तरह फूलता जाता है पूरक के बाद, जालंधर बंध एवं मूलय बंध लगाते हैं और आँख बंद करते हैं जितना की कुम्भक करते हैं आक्सीजन न रोक पाने की स्थिति में जालंधर बंध हटाते हैं मूलबन्ध ढीला छोड़ा जाता है आँखें खोलते हैं ! और बिना आवाज किये दोनों नाक व कान से श्वास का रेचन कर देते हैं रेचन की स्थिति में उड्डीयन बंध लगाते हैं !
शीतली प्राणायाम के लाभ
• इस प्राणायाम के अभ्यास से आपको बल और सौंदर्य बढ़ता है.
• अनेक रोग की निवृति होती है.
• रक्त शुद्धिकरन होता है.
• भूख-प्यास पर कंट्रोल प्राप्त होती है.
• ज्वर तथा तपेदिक रोग हमेसा दूर करता है.
• जहर के विक्कर को दूर करने के लिए सर्वोत्तम प्राणायाम माना जाता है.
• इसके सिद्ध हो जाने पर सार्प के काटने का भी असर नहीं होता.
• अभ्यासी व्यक्ति में अपनी त्वचा को बदलने की शक्ति आ जाती है.
• जल तथा अन्न के बिना रहने की शक्ति आ जाती है.
• यह प्राणायाम यकृत व प्लीहा के लिए अच्छा माना जाता है.
• इस प्राणायाम pranayam का अभ्यास शीतकाल या अत्यंत शीत में नहीं करते है. यह कफ प्रकृति वालों के लिए हितकर नहीं है !